Wednesday, January 26, 2011


आदमी और पत्ता...

दोनों अलग मगर एक,

दोनों उगते, पलते और ढलते

कोशिश करते कि अपने नियति को

बदल डालें...

समाज और पेड़ को

कुछ दे डालें.

सार्थक कर सकें अपने होने को

करोड़ों अरबों में

बन सकें कुछ अलग..

मगर,

ढलता हैं और टूट जाता है

हर आदमी और पत्ता!



प्यार और अँधेरा,
दोनों एक,


मगर फर्क इतना कि
दोनों बहते हैं जीवनधारा के
दो किनारे बनकर
जिनको मिलना ही है

किसी न किसी मोड़ पर !

जो शुरू हो जाते हैं
दिलों के जुड़ते ही.
और ऊंचे होते हैं
अरमानो के मचलने से
एहसासों के सिसकने तक
तन्हाई सी दुपहरियो से
एहसानों के घुमड़ने तक,
बस घुलती है स्याही और

बहती जाती है

आँखों से...
जब मिलते हैं
प्यार और अँधेरा...


सांझ हुई तो झाँक रहा है

झुरमुट के जालो से कोई
भूख लगी है मांग रहा है

गेहूं के बालो से कोई...!

आसमान में झाड़ू कर दो

आसमान में झाडू कर दो
सूरज को भी परे पटक दो,
चाँद पीट के चपटा कर दो
ख़ाली हो जब, कुछ दाने बो दो
धरती भर गयी, चलो आकाश जोत दो...!

Monday, May 10, 2010

टीस



साफ़ धरा पे उग आती हैं
ज्यों मटमैली खरपतवारें

जहाँ नहीं कुछ हो सकता है 
बन जाती हैं वहां दीवारें

लिपे चूल्हे की सौंधी महक को 
भूल जलाती ज्यों अंगारे 

शाम सवेरे, निपट अंधेरे 
दीप बुझाती ज्यो उजियारे 

तेज़ हवा के 'उस झोंके सी' 
टीस उठे यों मन के द्वारे।।।


Friday, February 5, 2010

हैती में उपस्थित चाचा जी को पत्र

नमस्ते चाचा जी,

आशा है आप सुखपूर्वक होंगे और अपने हैती प्रवास के नए नए अनुभवों का संचय एवं विवेचन कर रहे होंगे.
कभी कभी घर की याद भी आती होगी मगर निश्चय ही प्रगति पथ पर होने का एहसास उन यादों को एक नवीन उर्जा में रूपांतरित कर देता होगा. कितना सुखद एहसास होगा जब इसी सूर्य को क्षितिज के उस पार से देखते होंगे और इसी पवन को एक नए कलेवर के साथ एक नयी माटी की महक से भरा हुआ पातें होंगे.

उत्साह से भरी आपकी यात्रा निर्विघ्न संपन्न हो, हम , आपके परिवारी जन सदा यही कामना करते हैं. हालाकि सृष्टि अपनी शक्ति के एक हलके से प्रदर्शन से मानव की तमाम सीमाओं को बेमानी बना डालती है और विनाश के बाद फिर से उसी नैसर्गिक मानवीयता का पाठ पढ़ा जाती है जिसका कालांतर में सर्वदा अभाव हो जाता है. दूर देश में रहकर शुद्ध भारतीय मनीषा, आदर्शों और सेवा के प्रसार की महती ज़िम्मेदारी आप सब ले कर गए हैं और पूरे मनोयोग से परहित में तत्पर हैं. मैं इस पात्र के माध्यम से आप को और आप जैसे समस्त सेवाभावी भारतवासियों को अपनी और अपने परिवार की और से हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कर रहा हूँ और आप सभी को साधुवाद देना चाहता हूँ की आप और आप के जैसे अन्य अभिवादनीय भारतियों में आज भी महात्मा गाँधी और विनोबा जी की सेवा भावना और सम्राट चन्द्रगुप्त की वीरता प्रतिबिंबित हो रही है.

भारत भूमि एक अनंत कोष है जो सारी धरा को अपने पुष्पों से अनादिकाल से सुगन्धित बनाती आई है और बना रही है. इस घोर आपत्ति काल में जब हैती जैसे साधनहीन और पराश्रयी देश में आवश्यकता है, आप सब पूरे समर्पण भाव से अपना योग देकर, यहाँ, सात समुन्द्र पार, हम सब को गौरवान्वित और कृतज्ञ भाव से भर रहे हो.

आप के और सब के शुभ सहित-
-आपका वरुण